Wednesday, July 18, 2012

संपादकीय अग्रलेख

गुलाब, गुड़हल, गुलदाउदी की गुफ्तगू

कुछ दिनों से मौसम बड़ा ही खुशनुमा है। और बारिश की इस हल्की झड़ी का तो कहना ही क्या। मानसून के मौसम में सराबोर गुलाब के फूल की बात सुनकर गुड़हल का फूल भी चहकते हुए बोला - मुझे तो शॉवर बाथ बेहद पसंद है और ऐसी बारिश तो दिन भर मुझे शॉवर बाथ कराती रहती है, वरना धूप की तपिश में तो मैं कुम्हला ही जाता था। और उन गर्म हवाओं का तो पूछो ही मत। जब वो गर्म थपेड़े मुंह पर पड़ते थे तो ऐसा लगता था कि काश हम भी अंदर जाकर कूलर या एसी में कुछ देर सुस्ता लें। लेकिन हम कोई प्लास्टिक के फूल थोड़े ही हैं। रीयल हैं, तभी तो बगीचे की असली शोभा हैं। मौसम चाहे कैसा भी हो, हमें तो बाहर ही रहना है। लेकिन मौसम बदलने के असली गवाह भी तो हम ही हैं। गर्म मौसम के बाद इन ठंडी हवाओं और फुहारों ने तो दिलोदिमाग तरोताजा कर दिया। अपनी रौ में जब गुड़हल बोले जा रहा था तो अचानक उसकी नजर खिले हुए मोगरे के फूलों पर गई, जो काफी उदास दिख रहा था। न जाने क्या मायूसी थी, उसके चेहरे पर कि खुशबूदार मुस्कान भी उस मायूसी को छुपा नहीं पाई। गुड़हल ने पूछा, क्या बात है मोगरे भैया, ऐसे मौसम में तुम इतने चुप क्यों हो? तबीयत कुछ नासाज है? नहीं... बस यूं ही मन उदास है। यह कहकर वो फिर चिंता में खो गया। मोगरे की ये खामोशी सभी को उदास कर गई।

शायद वो सब भी कहीं न कहीं उसके गमगीन होने की वजह जानते थे। जब लिली के फूल ने उसके कंधे पर हाथ रखा तो मोगरा आंसू रोक नहीं पाया और बोला - दोस्तो, तुम सब इस बारिश का इंतजार करते हो, लेकिन मैं नहीं। बारिश मुझे बता देती है कि बस अब मेरे सामान बांधने की बारी आ गई। अब तो बस कुछ ही दिनों की बात है, फिर बस मेरा पौधा रह जाएगा और मैं अगले साल फिर आने का वायदा करके चला जाऊंगा। तुम सब तो साक्षी हो, जब शाम को हम सब मोगरे के फूल एक साथ खिलकर पूरी बगिया को महका देते हैं तो पूरे दिन की गर्मी मानो एक पल में ही चली जाती है। हम सभी फूलों को बुरा लगता है न कि कोई आता है और हमें तोड़कर ले जाता है लेकिन मुझे नहीं लगता है। इसकी एक प्यारी-सी वजह भी है। मैं तो हर सुबह नन्ही राधा का इंतजार करता हूं कि वो अपनी छोटी-सी टोकरी लेकर आएगी और मुझे अपनी टोकरी में भरकर ले जाएगी। जाहिर है मुझे तो गर्मी पता भी नहीं चलती क्योंकि वो मुझे घर के अंदर ठंडक में ले जाती है और एक गीले रूमाल में एहतियात से लपेटकर रख देती है। लेकिन अब मैं कर भी क्या सकता हूं...। और वो फिर शून्य में देखने लगा।

यह सब देखकर नन्हे गेंदे और गुलदाउदी के पौधे, जो अब तक सब कुछ चुपचाप देख और सुन रहे थे, मोगरे का दिल बहलाने के लिए बोले - मोगरे भैया तुम तो सिर्फ तीन महीने के लिए ही खिलते हो, लेकिन तुम्हारी सभी से दोस्ती हो जाती है। बस एक हम दोनों से ही तुम्हें न जाने कौन-सा बैर है? हम तो तुम्हारी खुशबू भी नहीं सूंघ पाते, बस सबसे जिक्र सुनते हैं कि तुम कैसे थे? हमें ये मौका क्यों नहीं मिलता बोलो? इन छोटे पौधों की बात पर मुस्कराते हुए मोगरा बोला - अच्छा ये भी खूब रही कि उदास मैं हूं और नाराज तुम दोनों हो गए। उन दोनों के सिर पर हाथ रखते हुए वो बोला। लिटिल चैंप्स एक बात सोचो कि अगर मैं नहीं जाऊंगा तो तुम कैसे आ पाओगे? और फिर मीठी हल्की धूप में बगिया कैसे गुलदाउदी और गेंदे की पीली चुनरियां ओढ़ेगी, बताओ तो जरा?

उनकी बात सुनकर बगीचे के सबसे पुराने हरशृंगार के फूल ने कहा - बात तो लाख टके की है और फिर भाई ये ही तो जिंदगी का नियम है। आएं हैं तो जाना भी होगा। जाने पर गम काहे का। खुशी इस बात की है कि हम सब एक साथ इस बाग में रहते हैं। रही आने-जाने की बात, तो ये तो ऋतुओं के साथ चलता ही रहता है। खुशबुएं चाहें बदल जाएं, लेकिन जरूरी यह है कि इस बगिया में हम सभी की दोस्ती की महक बनी रहे।

जब लिली के फूल ने मोगरे के कंधे पर हाथ रखा तो वह आंसू रोक नहीं पाया और बोला - दोस्तो, तुम सब बारिश का इंतजार करते हो, लेकिन मैं नहीं। बारिश मुझे बता देती है कि बस अब मेरे सामान बांधने की बारी आ गई है।

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