Tuesday, July 24, 2012
जबर्दस्त महंगाई सरकार असहाय
नई दिल्ली : पिछले तीन माह में जरूरी चीजों की कीमतों में सबसे अप्रत्याशित उछाल के बीच सरकार महंगाई को लेकर लगभग असहाय सी हो गई है। महंगाई को संभालने वाला तंत्र ठप है। मूल्यवृद्धि पर नजर रखने वाली मंत्रिमंडलीय समिति की बैठक करीब छह माह से नहीं हुई है। महंगाई के आकलन को लेकर रिजर्व बैंक व सरकार में गहरे मतभेदों ने बात और बिगाड़ दी है। कीमतों के ताजा आंकड़े भी चक्कर में डाल रहे हैं। थोक कीमतों में महंगाई सधी है, मगर उपभोक्ता बाजार तप रहा है। इन हालात ने महंगाई को लेकर सरकार में एक अजीब किस्म का नीतिगत शून्य सरकार .. पैदा कर दिया है। बाजार में जरूरी चीजों की खुदरा कीमतों में बढ़त के लिहाज से यह सबसे बुरा दौर है। आवश्यक वस्तुओं की कीमतें पिछले दो साल से ही काफी ऊंची हैं, मगर मार्च से अब तक इनमें सबसे तेज उछाल आया है। यह बढ़ोतरी दाल, तेल से लेकर फैक्ट्री में बने सामानों तक है। उपभोक्ता मंत्रालय के आंकड़े प्रमाण हैं कि केवल मार्च से अब तक चार माह में ही खाद्य तेल और दालों के दाम पांच से लेकर आठ रुपये प्रति किलो तक बढ़ गए हैं। मार्च से अब तक देश के अलग-अलग हिस्सों में आलू दोगुना और टमाटर ढाई गुना महंगा हुआ है। इधर बजट में बढ़ी एक्साइज ड्यूटी के कारण फैक्ट्री सामान की कीमतों में इजाफे ने स्थिति और बिगाड़ दी है। खराब मानसून के कारण जब महंगाई में नई लपट उठने वाली है, तब सरकार का महंगाई नियंत्रण तंत्र पूरी तरह सुन्न पड़ गया है। कीमतों में बढ़ोतरी रोकने के लिए पिछले छह माह से केंद्र सरकार ने कोई कदम नहीं उठाया। महंगाई की मॉनीटरिंग के लिए केंद्रीय मंत्रियों की समिति को छह माह में एक बैठक का मौका तक नहीं मिला। महंगाई पर सचिवों की एक समिति भी है। इस समिति की तीन माह से बैठक नहीं हुई। अलबत्ता खाद्य मंत्री केवी थॉमस ने जागरण से कहा कि कीमतें नियंत्रण में हैं। इसलिए मॉनीटरिंग की जरूरत नहीं पड़ी है। महंगाई के आंकड़ों को लेकर भी सरकार के भीतर असमंजस चरम पर है। महंगाई के असर को कम करने के जिम्मेदार रिजर्व बैंक व वित्त मंत्रालय में गहरे मतभेद दिख रहे हैं। ब्याज दरों में कमी बेसी का आधार बनने वाली मुद्रास्फीति की मूलभूत दर (पॉलिसी इंफ्लेशन) जून के आंकड़े के अनुसार पांच फीसद से नीचे रही है। इस मुद्रास्फीति दर में खाद्य उत्पादों की कीमतें शामिल नहीं होतीं। थोक मूल्य सूचकांक पर आधारित महंगाई की दर इसी दौरान 7.25 फीसदी पर रही है, लेकिन इसमें उपभोक्ता कीमतों की झलक नहीं होती। उपभोक्ता कीमतों वाली खुदरा महंगाई की दर दस फीसद से ऊपर बनी हुई।
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