Friday, June 29, 2012

मुफ्त में बदनाम हो गया धनबाद

धनबाद गैंग्स आफ वासेपुर को बाक्स आफिस पर मिली सफलता के बाद इसके निर्माता-निर्देशक अनुराग कश्यप चारों तरफ वाहवाही लूट रहे हैं, पर जिस धनबाद शहर और उसके छोटे कस्बे वासेपुर को केन्दि्रत कर फिल्म बनायी गई है, उसके हाथ सिर्फ और सिर्फ बदनामी लगी है। असल में फिल्म की तरह यहां अपराध व मारकाट नहीं होते। इस हकीकत को नेशनल क्राइम रिकार्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़े पुष्ट करते हैं। धनबाद वो शहर है जहां भारत के दस लाख से ज्यादा की आबादी वाले 35 बड़े शहरों में सबसे कम अपराध होते हैं। इसी धनबाद शहर के बीच में स्थित है वासेपुर। अपराध और इसके कारणों का अध्ययन करने के लिए प्रत्येक साल एनसीआरबी आंकड़ों को संग्रह करता है। एनसीआरबी ने पिछला आंकड़ा 2011 में जारी किया था। आंकड़ों के अनुसार 2010 में 10 लाख से ज्यादा की आबादी वाले भारत के शहरों में सबसे कम अपराध दर धनबाद (झारखंड) और सबसे ज्यादा कोच्चि (केरल) में दर्ज किये गये। धनबाद की अपराध दर 94.5 और कोच्चि की 1897.8 है। साहित्यकार और रेलकर्मी अनवर शमीम कहते हैं-गैंग्स आफ वासेपुर ने वासेपुर और धनबाद को बदनाम किया है। सीधे कहे तो यह डी ग्रेड की फिल्म है। उन्होंने कहा, बाजारवाद का प्रभाव है। कहानी में वासेपुर और धनबाद की एक-दो सच्ची घटनाओं को उठाकर तमाम तरह की फिल्मी मसालों की चाशनी में डूबो दी गयी है। इसके पीछे निर्माता-निर्देशक का एक ही उद्देश्य है-पैसा कमाना। फिल्म से देश में वासेपुर और धनबाद की कैसी छवि बनेगी, इससे कोई मतलब नहीं है। शमीम जो खुद वासेपुर में रहते हैं, ने कहा-मान लीजिए वासेपुर का कोई व्यक्ति जो पेशे से चिकित्सक या शिक्षाविद है, दिल्ली के किसी होटल में जाता है। उससे पहचान पत्र मांगा जाता है। पहचान पत्र मांगने वाले ने अगर फिल्म देखी होगी तो पहचान पत्र देखकर उसके मन में उस चिकित्सक या शिक्षाविद के प्रति कैसी छवि बनेगी?

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