Sunday, July 8, 2012
एंट्री लोड से आगे की राह
धानमंत्री मनमोहन सिंह के वित्त मंत्रालय संभालने के साथ ही देश का आर्थिक माहौल खुशगवार होने लगा है। म्यूचुअल फंड भी इस अछूते नहीं रहे हैं। वित्त मंत्रालय का कामकाज संभालते ही अपने पहले ही बयान में मनमोहन ने उन क्षेत्रों का जिक्र किया जिनमें बदलाव लाया जाना बेहद जरूरी हो गया है। इसमें उन्होंने म्यूचुअल फंड उद्योग को भी शामिल किया। फंड उद्योग को लगने लगा है कि बेहतर माहौल के लिए एंट्री लोड को दोबारा से लागू किया जाएगा। ऐसा सोचने के पीछे ठोस कारण भी हैं। एंट्री लोड को अगस्त, 2009 में खत्म किया गया था। इसके खत्म होने के साथ ही इक्विटी फंड में निवेश आना लगातार कम होता गया। ऐसे में जब हमें बीमारी की वजह पता चल चुकी है तो इसका इलाज भी आसान है। सरकार मान चुकी है कि एंट्री लोड खत्म होने से निवेश कम हुआ। ऐसी स्थिति में एंट्री लोड को दोबारा शुरू करके ही म्यूचुअल फंड उद्योग को आर्थिक सुस्ती से बाहर निकाला जा सकेगा। हालांकि मार्क ट्वेन की मशहूर उक्ति है कि हर समस्या का एक ऐसा हल है जो सीधा और सरल, मगर गलत होता है। मैं इस बहस में नहीं पड़ना चाहता कि एंट्री लोड उद्योग की बुरी स्थिति के लिए जिम्मेदार है या नहीं। वैसे, यह कहना भी ठीक नहीं कि केवल एंट्री लोड को वापस लाने से स्थिति बेहतर हो जाएगी। ऐसा करके हम वापस जुलाई, 2009 में पहुंच जाएंगे। तत्कालीन परिस्थितियों के हिसाब से बाजार नियामक सेबी ने एकदम सही समय उठाया था। उस समय कमीशन कमाने के लिए डिस्ट्रीब्यूटर निवेश को बार-बार घुमाते थे। एनएफओ की बाजार में बाढ़ आई हुई थी। डिस्ट्रीब्यूटर एनएफओ की तरफ पैसा भेजने में लगे हुए थे और जल्द से जल्द उसे खत्म कर दूसरे एनएफओ में पैसा डाला जा रहा था। इससे उन्हें पैसा आने और जाने दोनों ही स्थिति में कमीशन कमाने को मिल रहा था। अगर ध्यान से देखा जाए तो सेबी द्वारा एनएफओ संबंधी नियमों में बदलाव करने का उतना फर्क नहीं पड़ा, जितना उसके बाद आए बदलावों से हुआ। अब हालात अलग हैं, तो कदम भी उसी हिसाब से उठाने होंगे। एंट्री लोड के विषय से हटकर सोचा जाए तो हम पाएंगे कि फंड इंडस्ट्री में कई आधारभूत समस्याएं हैं। इनमें वितरण भी एक प्रमुख समस्या है। आप इन पर नजर नहीं डालना चाहते। फंड उद्योग के लोग कह रहे हैं कि एंट्री लोड आ जाए तो बाकी सब ठीक हो जाएगा। फंड बेचने पर उद्योग को उचित कमीशन नहीं मिल रहा है। लेकिन सच इससे इतर है। सबसे बड़ी आधारभूत समस्या यह है कि देश में लंबी अवधि के रिटेल इक्विटी निवेश के लिए अब तक उचित माहौल तैयार नहीं हुआ है। निवेशकों को भी इक्विटी म्यूचुअल फंड में रुचि नहीं है। बहुत कम भारतीयों ने लंबे समय के इक्विटी निवेश से लाभ उठाने में रुचि दिखाई है। वहीं पिछले दो दशक से छोटी अवधि की बिक्री में हो रहे फायदे व कमीशन के चलते डिस्ट्रीब्यूटरों ने भी उपभोक्ताओं को इसका लाभ पहुंचाने या समझाने में दिलचस्पी नहीं दिखाई। नई पेंशन स्कीम के तहत सरकार लंबे समय के निवेश को बढ़ावा दे सकती है। ऐसा करने के लिए सरकार को म्यूचुअल फंड के तहत पेंशन प्लान बेचने की इजाजत देनी चाहिए। इसके लिए किसी खास तैयारी की जरूरत भी नहीं पड़ेगी। इसके अंतर्गत ऐसे फंड होंगे, जिनमें रिटायरमेंट तक पैसा रहेगा। इसमें फायदे भी वही होंगे जो रिटायरमेंट को ध्यान में रखकर बनाई जा रही दूसरी स्कीम में होते हैं। इन्हें विभिन्न पेंशन फंडों को ट्रांसफर भी किया जा सकेगा। एक ऐसा साधारण प्रोडक्ट आसानी से लंबी अवधि के स्थायी निवेश को इक्विटी में लेकर आएगा। यह बाजार और निवेशकों के लिए फायदेमंद होगा। सरकार को दूसरा बड़ा कदम राजीव गांधी इक्विटी सेविंग स्कीम के संबंध में उठाना चाहिए। उसे म्यूचुअल फंड को इस स्कीम के दायरे में लाना चाहिए। यह स्कीम पहली बार निवेश कर रहे लोगों के लिए बनाई गई है। फंड को इक्विटी से ज्यादा सुरक्षित रास्ता माना जाता है। म्यूचुअल फंड पर नियामक जो भी फैसला ले पर हम तो यही उम्मीद कर सकते हैं कि इससे बदलाव दूरगामी आएं।
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