धनबाद : कोल इंडिया के 18 हजार से अधिक अधिकारियों का पिछले पांच साल से उलझा पीआरपी (प्रॉफिट रिलेटेड पे) का मुद्दा अब सुलझने को है। यह अब भारत सरकार के शीर्ष स्तर पर पहुंच गया है। एक-दो माह में इस पर कैबिनेट की मुहर लग जाने की संभावना है। इसके बाद राष्ट्रपति की ओर से अधिसूचना जारी की जाएगी। कोयला खदान अधिकारी संघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष शुकदेव नारायण ने बताया कि पीआरपी संबंधी प्रस्ताव कोल इंडिया से पारित होने के बाद कोयला मंत्रालय भेजा गया था। मंत्रालय ने इसे डीपीई (डिपार्टमेंट ऑफ पब्लिक इंटरप्राइचेज) को भेजा था। अब डीपीई ने इस संबंध में कुछ स्पष्टीकरण कोयला मंत्रालय से मांगा है ताकि यह राष्ट्रपति की अधिसूचना के अनुरूप हो। स्पष्टीकरण मिलते ही डीपीई इसे सचिवों की समिति को भेज देगा जहां से यह कैबिनेट के पास मंजूरी के लिए जाएगा।
क्यों हो रही माथापच्ची : अन्य लोक उपक्रमों की तुलना में कोल इंडिया का मामला अलग है। अन्य उपक्रमों में पीआरपी गणना के लिए अधिकारियों का व्यक्तिगत परफॉर्मेस एवं उपक्रम के एमओयू के अनुसार उपलब्धि की गणना होती है। वहीं कोल अधिकारियों के लिए बने नए फॉर्मूला में कोल इंडिया के लाभ को भी जोड़ा गया है। इसकी वजह यह है कि यहां अधिकारियों की नियुक्ति कोल इंडिया स्तर पर होती है तथा उनका एक अनुषंगी कंपनी से दूसरी अनुषंगी कंपनी में स्थानांतरण होते रहता है। दूसरा, कोल इंडिया में सीएमपीडीआइ ऐसी महत्वपूर्ण इकाई है जिसका मुनाफा बहुत कम है। ऐसे में असमान पीआरपी से अधिकारियों में असंतोष बढ़ेगा जिसका सीधा असर मानव संसाधन पर पड़ेगा। यही कारण है कि कोल इंडिया द्वारा गठित एक कमेटी ने अधिकारियों के लगभग समान पीआरपी वाला फॉर्मूला बनाया। बताते हैं कि मंत्रालय ने इस फॉर्मूले के आधार पर प्रस्ताव भेजा है। प्रस्ताव में पीआरपी के लिए कोष निर्धारण अनुषंगी कंपनियों के खातों से नहीं बल्कि कर भुगतान से पूर्व कोल इंडिया के कॉनसोलिडेट खाते से करने की मांग की गई है जबकि डीपीई के तय मार्गनिर्देश के तहत कंपनियों के खाते यह निर्धारण होना था। फॉर्मूले व कोष निर्धारण के इस अंतर के कारण ही कैबिनेट की मंजूरी आवश्यक है। अधिकारियों का पीआरपी 2007-08 से ही बकाया है। बीच में अधिकारियों को कुछ वर्षो के बकाये का करीब 75 फीसद राशि बतौर अग्रिम भुगतान किया गया था, लेकिन मामला नहीं सुलझने से वे आक्रोश में हैं।
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