आर्थिक सुस्ती के लिए सरकार जिम्मेदार
सिंगापुर : विकास दर में सुस्ती के लिए मनमोहन सरकार खुद ही जिम्मेदार है। यह ग्लोबल अनिश्चितता से उतना प्रभावित नहीं है जितना सरकार की ओर से दावा किया जा रहा है। अर्थव्यवस्था का आधार मजबूत होने के बावजूद नीतिगत अनिर्णय और आर्थिक सुधारों पर विरोध के चलते ही विकास दर घट रही है। वर्ष 2014 के आम चुनाव से पहले इस स्थिति में बदलाव की कोई संभावना नजर नहीं आ रही है। सिंगापुर स्थित ग्लोबल इकोनॉमी शोध सलाहकार फर्म कैपिटल इकोनॉमिक्स की ताजा रपट में यह दावा किया गया है। एशिया की उभरती अर्थव्यवस्थाएं-भारत को क्या हुआ नाम से जारी इस रपट में आम चुनाव से पहले आर्थिक सुधार लागू होने पर आशंका जताई गई है। रपट में कहा गया है कि विकास दर में कमी का सबसे बड़ा कारण निवेश में भारी गिरावट है। सालाना आधार पर इसकी वृद्धि दर सिर्फ 1.9 फीसद रह गई है, जबकि वर्ष 2010 के बाद की तीन तिमाहियों में इसमें दोहरे अंक की बढ़ोतरी दर्ज की गई थी। रपट के मुताबिक राजस्व घाटा और चालू खाते का घाटा कम करने में भी सरकार नाकाम रही है। उलटे इसमें बढ़ोतरी हुई है। वित्त वर्ष 2011-12 में जहां राजस्व घाटा बढ़कर 5.9 फीसद पर पहुंच गया, वहीं चालू खाते का घाटा 3.7 फीसद रहा है। महंगाई पर काबू पाने में भी सरकार की कमजोरी उजागर हुई है। यह अभी भी साढ़े सात फीसद के उच्च स्तर पर बरकरार है। देश के विदेशी मुद्रा भंडार में भी अगस्त 2011 के बाद से 30 अरब डॉलर की कमी आई है। यह अब 292 अरब डॉलर रह गया है। रिपोर्ट में सवाल उठाया गया है कि इन सबके लिए ग्लोबल अनिश्चितता को कैसे जिम्मेदार ठहराया जा सकता है। वर्ष 2009 में यूपीए-2 की सरकार बनने के बाद से कोई बड़ा आर्थिक सुधार नहीं हुआ है। मल्टी ब्रांड रिटेल, बीमा और विमानन क्षेत्र में एफडीआइ सहित भूमि अधिग्रहण की समस्या और खनन में निवेश जैसे कई मुद्दे हैं जिस पर फैसला लेने से सरकार हिचकती रही है। कैपिटल इकोनॉमिक्स ने आशंका जताई है कि अगले दो साल में नीतिगत अनिर्णय की स्थित और खराब रहेगी। आम चुनाव को देखते हुए लोकलुभावन योजनाओं पर खर्च में और बढ़ोतरी होगी जिससे राजस्व घाटा और बढ़ेगा। इन सब वजहों से ही देशी-विदेशी निवेशकों का भरोसा घटा है।
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