Thursday, July 19, 2012

अच्छा तो हम चलते हैं..

मुंबई में राजेश खन्ना ने ली आखिरी सांस, आज सुबह 11 बजे अंतिम संस्कार

देवघर : राजेश खन्ना 2 मार्च, 2011 को देवघर में शिवरात्रि महोत्सव में शरीक होने आए थे। वे तीन दिन यहां ठहरे थे। उनकी एक झलक पाने को भीड़ इस कदर उमड़ी थी कि वह रोड शो करने को विवश हो गए। देवघर में मीडिया से बातचीत में काका पूरे शायराना अंदाज में थे। कहा- आप न जाने मुझे क्या समझते हैं। मैं तो कुछ भी नहीं। मेरे हमदम, मेरे दोस्त-इज्जत, शोहरत व चाहत सब कुछ दुनिया में रहता नहीं। यह भी एक दौर है, वह भी एक दौर था। देवघर में गुजारी दो रात : वह दो मार्च, 2011 को देवघर आए थे और चार मार्च को मुंबई लौट गए थे। तीन मार्च की सुबह बाबा के दरबार में माथा टेका।

1942-2012

नई दिल्ली : फिल्मों के आखिर में हंस कर मौत को गले लगाने वाले नायक के अविस्मरणीय रोल अदा कर अमर हो गए बॉलीवुड के पहले सुपरस्टार राजेश खन्ना यानी अपने काका नहीं रहे। अपनी यादगार फिल्म आनंद के मशहूर डायलॉग, बाबू मोशाय, जिंदगी लंबी नहीं बड़ी होनी चाहिए को उन्होंने भरपूर जिया। शोहरत की बुलंदियों से गर्दिश के गुबार तक जिंदगी के एक-एक पल का आनंद लिया। उनके बारे में कहा जाता था, ऊपर आका, नीचे काका। उनसे पहले भी मायानगरी में स्टार हुए, जिनके करोड़ों फैन थे, लेकिन जिस तरह की मास हिस्टीरिया उनके लिए देखी गई, वह बेमिसाल थी। राज कपूर, दिलीप कुमार और देवानंद या फिर राजेंद्र कुमार और शम्मी कपूर के मैनरिज्म की भी महिलाएं दीवानी थी लेकिन चहारदीवारी में बंद। उनकी अगली पीढ़ी को राजेश खन्ना के रूप में एक ऐसा नायक मिला जिसके लिए सारी बंदिशें तोड़ी जा सकती हैं। सड़क के किनारे उनका घंटों इंतजार किया जा सकता है। उनकी कार के आगे लेटा जा सकता है, उसे चूमा जा सकता हैं। यहां तक कि उन्हें खून से खत भी लिखे जा सकते हैं। उनकी तस्वीर से शादी की जा सकती है। उन्होंने न तो किसी की नकल की और न ही कोई उनकी कॉपी कर पाया। अपनी स्टाइल के बिल्कुल जुदा फनकार। अपना बना लेने वाली मुस्कुराहट, शरारत और गुस्से से लेकर प्यार तक की भाषा बोलती चंचल आंखें डांस का अलग स्टाइल, सब कुछ ट्रेडमार्क। हाल के वर्षो में जब भी मंच पर आए तो वहां वही अक्खड़पन, आज मैं हूं जहां, कल कोई और था। ये भी एक दौर है, वो भी एक दौर था। वर्ष 1969-72 तक 15 सोलो सुपरहिट फिल्मों का रिकॉर्ड बनाने वाले काका का जादू और जलवा कभी खत्म नहीं होगा। टैलेंट हंट के जरिए बॉलीवुड में एंट्री करने के बाद शुरुआत में मिली फिल्में हिट नहीं रही, लेकिन उनमें आने वाले सितारे की झलक दिख गई थी। 1969 में शर्मिला टैगोर के साथ आई आराधना ने उन्हें रातोरात रोमांटिक हीरो के रूप में स्थापित कर दिया। इसके बाद तो उन्होंने सुपरहिट फिल्मों की झड़ी लगा दी। संगीतकार आरडी बर्मन और गायक किशोर कुमार के साथ उनकी जोड़ी जैसी सफलता फिर किसी त्रयी को नहीं मिली। अमिताभ युग में परदे के पीछे जाने के बाद वापसी की। दूसरी पारी में भी थोड़ी सी बेवफाई, आखिर क्यों, अगर तुम न होते, अमृत और अवतार में छाप छोड़ी और राजनीति में भी हाथ आजमाया। 1992 में कांग्रेस के टिकट पर दिल्ली से सांसद बने। इस साल अप्रैल से बीमार चल रहे इस अभिनेता को दो दिन पहले मुंबई के लीलावती अस्पताल से छुट्टी मिली थी। उसके बाद से बांद्रा स्थित उनके बंगले आशीर्वाद में उन्हें वेंटिलेटर पर रखा गया था। बुधवार को दोपहर में उन्होंने वहीं अंतिम सांस ली। आखिरी वक्त में पत्नी डिंपल कपाडि़या (बॉबी फेम), बेटियां (ट्विंकल और रिंकी) और दामाद अक्षय कुमार (ट्विंकल के पति) साथ में थे।

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