Thursday, July 19, 2012

संपादकीय अग्रलेख

                                                         'सत्यमेव जयते' के मायने '

पिछले कुछ हफ्तों से हम बॉलीवुड के सुपरस्टार आमिर खान को टेलीविजन पर प्रसारित अपने शो 'सत्यमेव जयते' में अनेक अहम सामाजिक मसलों को उठाते हुए देख रहे हैं। वे जिस अंदाज में इस शो को पेश करते हैं, वह मुझे अच्छा लगता है। हालांकि मैं जानता हूं कि कई लोगों को यह शो आकर्षित नहीं भी करता। संभवत: मैं इसकी वजह भी जानता हूं। इसकी कुछ खामियां तो बिलकुल स्पष्ट हैं। 



शुरुआत से देखें तो उनका यह शो हमें ऐसा आभास (कुछ हद तक झूठा भी) देता है कि यह हमारे समाज में व्याप्त बुराइयों को मिटाना चाहता है। लेकिन जब आप इसे लगातार देखते हैं, तो आपको एहसास होता है कि आमिर कोई समाज सुधारक नहीं हैं। वे महज परिदृश्य में दिलचस्पी रखने वाले शख्स हैं, हालांकि हम पत्रकारों की तरह नहीं। पत्रकार न सिर्फ सामाजिक बुराइयों की ओर इशारा करते हैं, वरन वे उनके खिलाफ अभियान भी चलाते हैं। जिस चीज में उन्हें भरोसा होता है, वहां वे अपनी गर्दन फंसाए रहते हैं। आमिर ऐसा कुछ नहीं करते। हां यह जरूर है कि उन्होंने एक पत्रकार की टोन और हाव-भाव को अपना लिया है। वह आपके समक्ष समस्या पेश करते हैं और उसके बाद पीछे हट जाते हैं, इस उम्मीद के साथ कि राजनीतिक व्यवस्था इसे दुरुस्त करेगी। जबकि हम सब जानते हैं कि यह कभी नहीं होने वाला। इस लिहाज से यह एक भावुकताप्रधान शो है, जिसे देखकर आपके आंसू निकल सकते हैं। लेकिन इससे आपके आसपास की दुनिया में बदलाव नहीं आएगा। इसकी ऐसी मंशा भी नजर नहीं आती। 



इसी बात से और भी हताशा होती है। जब कोई आपको यह बताए कि समाज में क्या गलत हो रहा है तो आप उस शख्स से उम्मीद करते हैं कि वह इसे दुरुस्त करेगा (जैसा कि कोई लीडर कर सकता है, यदि उसकी वास्तव में मंशा है तो) या हमारे राजनीतिक तंत्र पर इतना दबाव डालेगा कि वह कुछ करने के लिए मजबूर हो जाए (जैसा कि कोई पत्रकार करने की कोशिश भी करता है, हर बार नहीं मगर ज्यादा सफलता के साथ)। लेकिन 'सत्यमेव जयते' ऐसा कुछ करता नजर नहीं आता। शो के दौरान आमिर को कई बार हम आंसू बहाते हुए देखते हैं। उनके साथ हमारी भी आंखें डबडबा जाती हैं। लेकिन अगले हफ्ते हम एक नई समस्या, एक नए भावुकतापूर्ण शो, एक और भाव-विरेचन की ओर बढ़ जाते हैं। कोई नहीं जानता कि इन तमाम दुखद गाथाओं के साथ क्या किया जाए। यदि ये किसी अखबार में प्रकाशित होतीं तो लोग संभवत: जनहित याचिकाएं दायर करते या सूचना के अधिकार के तहत जानकारी मांगते हुए यह देखते कि वे किस तरह मामले को आगे तक ले जा सकते हैं, जिससे सरकार कुछ करने के लिए मजबूर हो जाए। हम सब जानते हैं कि कोई भी सरकार स्वेच्छा से काम नहीं करती। चूंकि आमिर यहां पर मुख्य वार्ताकार की भूमिका में हैं, लिहाजा लोग उनसे ऐसा करने की उम्मीद करते हैं। 


फिल्म जगत के सितारे भले ही रुपहले परदे पर लार्जर दैन लाइफ किरदार में दिखाई दें, लेकिन जब राजनीतिक तंत्र से जूझने की बात आती है तो उन्हें इस बारे मे कुछ भी पता नहीं होता। कई बार तो मुझे अंदेशा होता है कि वे ऐसा करना भी नहीं चाहते। अपने रील लाइफ किरदारों से इतर रियल लाइफ में वे राजनेताओं को दुश्मनों की तरह नहीं देखते। वे उन्हें अपने साथी समूह के तौर पर देखते हैं - ऐसे लोग जिनके पास पावर व पैसा है। दूसरी ओर पत्रकार अक्सर लीक से हटकर स्टोरीज की तलाश में अपना जीवन जोखिम में डालते हैं। मैं इस बात को इसलिए जानता हूं क्योंकि दूसरे कई पत्रकारों की तरह मैंने भी अनगिनत अदालती मुकदमों, उत्पीडऩ, डांट-डपट और यहां तक कि जान से मारने की धमकियों का सामना किया है। लेकिन हम इसे अपने हिसाब से लेते हैं, क्योंकि हम इसे अपने जॉब की तरह देखते हैं। लेकिन कोई फिल्मी सितारा यह नहीं समझेगा कि सच्चाई को उजागर करना उसका जॉब है। उसका जॉब तो फंतासी रचना है। इसलिए भले ही वह कभीकभार किसी मुद्दे के पक्ष में आकर खड़ा हो जाए, लेकिन जब चीजें गंभीर होने लगें तो वह सबसे पहले किनारे हो जाएगा। मैं इसके लिए उन्हें दोष भी नहीं देता। आखिर वे यह सब करने के लिए तो घर से नहीं निकले हैं।


यही इस शो की सबसे बड़ी खामी है। आमिर सितारों से संबंधित इस धारणा को तोडऩे की अपनी ओर से पूरी कोशिश करते हैं, लेकिन यह उनके हाथ में नहीं है। उन्हें वापस जाकर फिल्मों में काम करन होगा। आखिरकार 'सत्यमेव जयते' उनके लिए एक टीवी शो ही तो है। यह उनकी जिंदगी नहीं है। फिर भी एक पत्रकार की टोन अपनाते हुए वह ऐसा जताते हैं, मानो अपने द्वारा उठाए गए मुद्दों के प्रति सही मायनों में काफी चिंतित हैं। यहीं पर विरोधाभास नजर आता है और यहीं आकर 'सत्यमेव जयते' नाकाम होता लगता है। ऐसा इसलिए है क्योंकि आमिर एक समाधान के माध्यम से मुद्दों को नहीं देख सकते और न ही देखेंगे। वह अच्छे इंसान हैं, लेकिन बदलाव के प्रवर्तक नहीं। वह एक अभिनेता, एक रोल मॉडल होने के अलावा एक पत्रकार की भूमिका के लिए आकर्षक विकल्प हो सकते हैं। लेकिन न तो उनमें बदलाव लाने की मंशा है और न ही इसके प्रति कोई जिद। उनके पास ऐसा करने के लिए समय भी नहीं है। उनके लिए यह महज एक टीवी शो है। यह उनकी जिंदगी नहीं है और न ही जीवन का उद्देश्य। 


लेकिन हां, 'सत्यमेव जयते' से आखिरकार बदलाव आएगा। दरअसल हम जिस किसी भी चीज को पसंद करते हैं, वह अपना प्रभाव जरूर छोड़ती है। तत्क्षण नहीं तो बाद में ही सही, लेकिन ये प्रभाव नजर जरूर आते हैं। यही कारण है कि इस शो का होना इतनी अहमियत रखता है। यह इसलिए अहम है कि आमिर ने इसे एक उद्देश्य की तरह देखा, भले तेरह हफ्तों की अवधि के लिए ही सही। अब आम जनजीवन को बीड़ा उठाना होगा। इतिहास को इसे आत्मसात करना होगा। आपको व हमें इसे आगे ले जाना होगा। आमिर खान का काम तो खैर १३ एपिसोड के बाद खत्म हो जाएगा। 


आमिर खान का शो 'सत्यमेव जयते' स्टार नेटवर्क के विभिन्न चैनलों के अलावा दूरदर्शन के राष्ट्रीय चैनल पर एक साथ प्रसारित होता है। 
यह निजी चैनल नेटवर्क के साथ-साथ सरकारी चैनल पर प्रसारित होने वाला देश का पहला शो है। 


शो की अहमियत 
'सत्यमेव जयते' से आखिरकार बदलाव आएगा। हम जिस चीज को पसंद करते हैं, वह देर-सबेर अपना प्रभाव जरूर छोड़ती है। यही कारण है कि इस शो का होना इतनी अहमियत रखता है। 


प्रीतीश नंदी 
लेखक वरिष्ठ पत्रकार और फिल्मकार हैं। 
 आमिर खान एक बेहतरीन अभिनेता व रोल मॉडल होने के अलावा एक पत्रकार की भूमिका के लिए आकर्षक विकल्प हो सकते हैं। लेकिन न तो उनमें बदलाव लाने की मंशा है और न ही इसके प्रति कोई जिद। उनके पास ऐसा करने के लिए समय भी नहीं है।


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