Thursday, July 5, 2012

भगवान के करीब पहुंचा विज्ञान

सर्न के वैज्ञानिकों का दावा, खोज लिया गया गॉड पार्टिकल, इसी तत्व से हुआ ब्रंाांड का निर्माण

जेनेवा, रायटर : दिन बुधवार, तारीख 4 जुलाई 2012 विज्ञान की दुनिया में मील के पत्थर के तौर पर दर्ज हो गया है। स्विट्जरलैंड में यूरोपियन सेंटर फॉर न्यूक्लियर रिसर्च (सर्न) के वैज्ञानिकों ने घोषणा की है कि गॉड पार्टिकल (ईश्वरीय कण) यानी हिग्स बोसोन की खोज कर ली गई है। इसे सौ साल की सबसे बड़ी खोज माना जा रहा है। ब्रिटेन के नेतृत्व वाली अंतरराष्ट्रीय परियोजना, लार्ज हैड्रन कोलाइडर (एलएचसी) पता लगाने में जुटी है कि जिस ब्रंाांड में हम रहते हैं, वह महाविस्फोट (बिग बैंग) के साथ कैसे शुरू हुआ था। वैज्ञानिकों का दावा है कि इसी तत्व से ब्रंाांड का निर्माण हुआ था। इससे पता चलेगा कि प्राथमिक कणों में द्रव्यमान का स्रोत क्या है। सर्न के महानिदेशक डॉ. रॉल्फ ह्यूर के मुताबिक, फिलहाल यह कहना जल्दबाजी होगी कि खोजा गया कण स्टैंडर्ड मॉडल के मुताबिक हिग्स बोसोन है या कोई एकदम नया कण। उनके मुताबिक अभी यह दावा नहीं किया जा सकता कि यह एक अलग कण है या अब तक नहीं खोजे जा सके कणों में पहला कण है।

हिग्स बोसोन : नाम के पीछे के नायक

अक्सर हम सुनते पढ़ते हैं कि नाम में क्या रखा है, लेकिन आज जिस हिग्स बोसोन शब्द की चर्चा पूरे विश्व में हो रही है, उस नाम के रखे जाने की वजह दो भौतिक विज्ञानी हैं। ब्रिटिश भौतिक विज्ञानी पीटर हिग्स और भारतीय भौतिकशास्त्री सत्येंद्र नाथ बोस। इन दोनों विज्ञानियों के इस क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान के चलते इस कण को हिग्स बोसोन नाम दिया गया।

भूल गए सत्येंद्र नाथ का योगदान, नई दिल्ली : पश्चिमी वैज्ञानिकों ने गॉड पार्टिकल यानी हिग्स बोसोन की खोज में भारतीय वैज्ञानिक के योगदान की पूरी तरह अनदेखी की है। हिग्स बोसोन नाम एडिनबर्ग यूनिवर्सिटी के भौतिकविद् पीटर हिग्स के नाम पर पड़ा है जबकि वास्तविकता यह है कि बोसोन की खोज का श्रेय कोलकाता के भौतिकविद् सत्येंद्र नाथ बोस को जाता है। 1924 में उन्होंने महसूस किया कि 19वीं सदी के दौरान गैसों के तापीय व्यवहार के विश्लेषण के लिए अपनाया जा रहा तरीका अपर्याप्त है।

साकार हुआ हिग्स का सपना जेनेवा : सपने देखना और बात है, मगर सपनों को हकीकत में बदलते देखना कुछ सौभाग्यशाली लोगों को ही नसीब होता है। ऐसे ही लोगों में पीटर हिग्स भी शामिल हैं, जिन्होंने गॉड पार्टिकल अथवा हिग्स बोसोन कण से संबंधित सिद्धांत 1964 में प्रतिपादित किया था। ब्रिटिश वैज्ञानिक हिग्स भी बुधवार को जेनेवा में आयोजित कार्यक्रम में मौजूद थे। यहां एलएचसी केंद्र में घोषित परिणामों का तालियों की गड़गड़ाहट के साथ अभिवादन किया गया। गॉड पार्टिकल जैसे कणों की मौजूदगी के संकेत मिलने पर हिग्स की खुशी का ठिकाना नहीं रहा और आंखों से आंसू छलक पडे़।

1 comment:

  1. पहला पन्ना या आखिरी पन्ना कहा से लिखु उस एक पल का सत्य समझ ही नही आता,
    क्या कुछ नही होकर चला गया उस एक पल मे,
    सब बिगङकर बन गया या यु कहो बनकर बिगङ गया उस एक पल मे,
    ना जाने कितना कुछ अपने अन्दर ही छुपा लिया उस एक पल ने,
    क्या कहु कैसै समझाऊ उस एक पल को,
    ना जाने कितने एक पल समा गये उस एक पल मे,
    क्या समझाऊ उस पल की कहानी क्या समझाऊ उस की दास्ता,
    जिसमे सब कुछ रूककर फिर शुरू हो गया,
    उस एक पल मे ना जाने कितने एक–एक पल के टुकङे होकर समा गये,
    फिर भी वो पल वही का वही रह गया,
    उस पल मे ना जाने कितने ही पल समाकर गुम हो गये,
    उस पल को खोजते-खोजते ना जाने कितने ही उस पल मे हमेशा के लिये गुम हो गये,
    कल भी छुपा था आज भी छुपा है,
    क्या है ऐसा उस पल के अंदर जिसमे न जाने कितने एक पल भी समाकर खो गए,
    अब तुम ही बतलाओ ए मानुष उस पल का कैसे तुम्हे राज समझाऊ,
    जिसमे एक-एक पल करके ना जाने कितने एक पल समा गए,
    मगर सवाल फिर भी वही का वही है,
    हम जानते उस एक-एक पल का आखिरी जवाब जहॉ तक है,
    उस एक पल को पकङ पाते है या जाते देख पाते है,
    नही ये जान पाते है क़्या हुआ उस आखिरी पल के बाद के पल मे,
    ना जाने कितने एक आखिरी पल खो गऐ उस आखिरी पल के बाद के पहले पल को तलाश करने मे,
    जँहा भी एक पल को खोज के देखा तो अगले पल के होने का अहसास दे गया,
    आखिरी एक पल जहॉ तक तलाश किया एक पल को, वो एक पल बढता ही चला गया,
    जहॉ तक भी उस पल मे उस एक पल की तलाश की, ना जाने कितना बडा लगा,
    मगर ना जाने कितने एक-एक पल आगे जाके देखा,
    उस पल के होने का एहसास तो मिला मगर वो पल फिर भी ना मिला,
    अब मानुष सोच रहा कैसे करू तलाश, उस एक पल के बाद के पल का रहस्य क्या है,
    उस एक पल के बाद का आश्चयॅ, वो पल ना मिले ना सही ये तो पता चले क्या है,
    उस एक आखिरी पल के बाद घटने वाले पहले पल का रहस्य,
    यही सोचकर दिया कदम बढाऐ, उस आखिरी पल मे फिर भी रहस्य का रहस्य ही रह गया,
    आखिरी पल भी मिल गया और उसके बाद का पहला पल भी मिल गया,
    मगर फिर तलाश अधुरी की अधुरी रह गयी,
    उस आखिरी एक पल और पहले एक पल के बीच वो पल फिर रह गया,
    कैसे करू तलाश कैसे देखु उस पल को जो दोनो के बीच आया तो सही मगर आकर चला गया,
    देखकर भी नही देखा वो पल आया भी और आकर चला भी गया,
    अगर ए मानुष तु मानता है ये सवाल है,
    तो दोनो के बीच ठहर जा, वही तुझे वो पल मिलेगा,
    जिसमे गति दिखाई देती है मगर होती नही,
    यही वो फैसले की घङी है जब तुझे उस पल मे फैसला करना है,
    जो दोनो के बीच तु खङा है यही सवाल है यही जवाब है, ना समझे वो अनाङी है,
    आखिरी पल मे फैसला कर ले रूककर बीच मे जाना है,
    फिर जो तु देखना चाहे वही पल पहला पल हो, ये फैसला तु बीच मे खङा होकर कर ले,
    जिस पल को तु चुन ले, वही तेरा पहला पल हो,
    इस घाटी मे उतरने को कितने है बेताब,
    मगर जान ले ए मानुष कितना आसान और कितना मुश्किल है,
    ये आखिरी पल और पहले पल के बीच पल का स्थान,
    उस पल पर पहुचने के वास्ते तुझे होना होगा दुर आखिरी और पहले पल से,
    दोनो की दुरी को बॉटना होगा, बॉटते ही दुरी दोनो के बीच की हो जाएगा तु दोनो के बीच,
    वही खङे होकर तुझे लेना है फैसला कौन सा हो तेरा अगला पहला पल,
    जान ले तु खङा नही होगा और खङा भी होगा, जब तु होगा खङा उन दोनो पल के बीच,
    होगा सभी एक-एक पल मे, मगर दोनो पलो को बॉट देना होगा तुझे बीचो-बीच,
    टुट जाएगा नाता तेरा सबसे कुछ पल कहो या वो एक पल जिसमे तु होगा सभी से दुर,
    वही जाकर लेना होगा अगले पहले पल कहा होना चाहता है तु,
    नही कर सकेगा जब तक तु ये सब करना है बैकार,
    नही कभी ये जान सकेगा दोनो एक पल के बीच का सच,
    और किसी भी तरह ना तु समझ पाएगा उस पल का सच,
    जो पहुचेगा वही जान पाएगा उस पल का सच,
    वो भी इतना ही वो एक आखिरी पल भी था और ये पहला पल भी है,
    फिर भी गुप्त रह जाएगा वो दोनो के बीच,
    छुट गया वो पल पकङ लो उसको,
    जिसे पकङकर पार उतर गये साधु सन्त और फकिर,
    मानुष देखता रह गया वो निकल गये बीचो-बीच बे रॅग !!
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