‘गैंग्स ऑफ वासेपुर’ के निर्देशक अनुराग कश्यप स्वीकारते हैं कि वह विदेशी बाजार के लिए सिनेमा बनाते हैं। इस बात से काफी खुश भी हैं कि भारतीय सिनेमा नए आयाम हासिल कर रहा है। अनुराग की बातें उन्हीं के शब्दों में।
नए अंदाज में ढल रहा है सिनेमा
सिनेमा बदल गया है। दर्शक बदल गए हैं। अब हर किसी को अच्छी कहानी चाहिए, सिवाए निर्माताओं के। कई निर्माताओं को अच्छी कहानी की सेंस नहीं होती। उन्हें बस फिल्म के हिट होने से मतलब होता है। लेकिन अच्छी बात यह है कि मेन स्ट्रीम सिनेमा की परिभाषा बदल रही है। इसकी वजह हैं विद्या बालन और आमिर खान। इन दोनों ने सेफ जोन से हट कर काम किया है। अब 60 और 70 का दशक लौट रहा है यानी ऐसा समय, जब एक फिल्मकार फिल्म को कई साल तक जीता है।
मेरे लिए विदेशी मार्केट जरूरी है
मेरे जैसे फिल्मकार के लिए विदेशी मार्केट बहुत जरुरी है, इसीलिए मैं कान्स गया। वहां के दर्शकों ने मेरी फिल्म को सराहा। फेस्टिवल में मेरी फिल्म बिकी, पैसा मिला, जिसकी वजह से फिल्म बनाने के लिए मुङो निर्माता भी मिले। यह फायदा भी हुआ कि ‘गैंग्स आफ वासेपुर’ लैटिन, अंग्रेजी,फ्रेंच भाषाओं के लिए बिक गई। हमें पैसे भी ठीक-ठाक मिल गए।
ऐसे बनी ‘गैंग्स ऑफ वासेपुर’
एक दिन वासेपुर के रहने वाले जीशान कादरी मुझसे मिले। उन्होंने इस फिल्म में अभिनय भी किया है। उन्होंने ही मुझे यह कहानी सुनाई थी। कहानी मुङो बहुत पसंद आई। यह फिल्म धनबाद के वासेपुर गांव के कोयला माफिया के इर्द-गिर्द घूमती है। जीशान से कहानी सुनने के बाद हमने इस पर रिसर्च की। फिर जीशान कादरी ने 180 पेज का एक उपन्यास लिख डाला। उसी उपन्यास को आधार बना कर हमने नए सिरे से पटकथा लिखी। पटकथा लिखते समय हमने पात्रों के नाम और घटनाक्रमों में कुछ बदलाव किए। खास बात यह कि यह फिल्म मेरी दूसरी फिल्मों की तरह डार्क फिल्म नहीं है।
मीडिया है तो विवाद हैं
विवाद खड़ा करने वालों को रोका नहीं जा सकता। कभी भी, कोई भी इंसान कोर्ट चला जाता है। यह सिस्टम ही गलत है। सब कुछ वोट बैंक की राजनीति की वजह से है। सिनेमा में मीडिया को इतनी स्पेस मिल जाती है, इसी वजह से जल्दी विवाद पैदा हो जाते हैं।
हर बार अलग संगीत परोसता हूं
मेरी संगीत की समझ काफी अच्छी और युनीक है। मेरी फिल्म ‘गुलाल’ का संगीत भी अच्छा था, पर लोगों ने इसे सुना नहीं। हर फिल्म में मैं नए तरह का संगीत देना चाहता हूं। नया संगीतकार चुनता हूं, जिससे वह समय देकर मेरी पसंद का संगीत दे सके। फिल्म ‘गैंग्स आफ वासेपुर’ के संगीत को संवारने में इसकी संगीतकार स्नेहा खानवलकर को पूरे ढाई साल का समय लगा। स्थापित संगीतकार इतना वक्त एक फिल्म को देने से रहे।
मैं और मेरा भाई
हम दोनों भाई आपस में हर मसले, मुद्दे, विषय पर खुल कर बात करते हैं। सच कहूं तो मैं उसी की बदौलत लंबे समय तक संघर्ष कर सका। मेरा भाई गणित/कॉमर्स में बचपन से ही अच्छा रहा है। वह मुंबई एमबीए करने आया था, पर यहां उसने अस्तित्व की लंबी लड़ाई लड़ी। मैं मजे से अपने मन का काम करने के लिए संघर्ष करता रहा। भाई ने ही पूरे परिवार को संभाला। जब मेरी फिल्म ‘देव डी’ हिट हुई, तब उसने ‘दबंग’ बनानी शुरू की।
No comments:
Post a Comment