Friday, July 20, 2012

संपादकीय अग्रलेख

                                                     सुशासन से सुधरेगी तस्वीर 



मौजूदा यूपीए सरकार के बारे में ज्यादातर लोग यही मानते हैं कि उसके पास नीतियों का अभाव है। इस सरकार का २ साल का कार्यकाल अभी बाकी है और चीजों को बदलने के लिए यह बहुत कम नहीं है, लेकिन समय तेजी से निकलता जा रहा है। देश की डावांडोल अर्थव्यवस्था को संभालने, घोटालों और दिशाहीनता के बोध से संतप्त कार्यपालिका की साख को बहाल करने की जरूरत है। देशवासी लंबे समय से साफ-सुथरी व निर्णायक शासन प्रणाली की मांग कर रहे हैं। लेकिन इसके साथ-साथ उन्हें ऐसा नेतृत्व भी चाहिए, जो उनकी परवाह करे। जब यूपीए सरकार ने वर्ष २००९ में तमाम अनुमानों को झुठलाते हुए दमदार तरीके से लगातार दूसरी बार सरकार बनाई, तो ऐसा उसके द्वारा 'आर्थिक सुधारों' के नाम पर अर्थव्यवस्था को गति देने या परमाणु करार को सफल अंजाम तक पहुंचाने की वजह से नहीं हुआ। मेरा मानना है कि यह महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) जैसे कार्यक्रमों की वजह से हुआ, जिनके क्रियान्वयन में अनेक खामियों के बावजूद भारत के निर्धनतम लोगों को भूख, कर्ज, बंधुआ मजदूरी और पलायन जैसी विपदाओं से जूझने का सम्मानित विकल्प मिला। इन कार्यक्रमों ने देश की विकासगाथा में पीछे छूट गए करोड़ों लोगों को लाभ पहुंचाया। यही वजह है कि उन्होंने पिछले आम चुनाव में यूपीए के पक्ष में वोट दिया। 
यूपीए अगर फिर से सत्ता में आना चाहता है तो ऐसी शासन व्यवस्था देनी होगी, जिसे देखकर लगे कि उसे लोगों की परवाह है। उसे अपने ऊपर लगे इस दाग को हमेशा के लिए मिटा देना होगा कि वह अनाज को अपने भंडारगृहों में सडऩे या इसे रियायती दरों पर निर्यात तो करने देती है, लेकिन इसे ऐसे लोगों में वितरित नहीं करती, जो भूखे पेट सोने को विवश हैं। इस सरकार की पहली और सर्वोच्च प्राथमिकता खाद्य सुरक्षा विधेयक की राह आसान करना होनी चाहिए। देश के ज्यादातर परिवारों को रियायती खाद्य के दायरे में लाया जाए। 
इसके साथ-साथ किसानों की बदहाली पर गौर करना भी जरूरी है, जो आज भी गरीबी और नैराश्य की स्थिति से उबर नहीं पा रहे हैं। कई जगहों पर किसान आत्महत्या कर रहे हैं। कृषि के पुनरुद्धार के लिए खासकर छोटे व मध्यम दर्जे के किसानों को बुनियादी आय का सहारा और बीमा जैसी सुविधाएं देनी होंगी, कृषि साख का व्यापक विस्तार करना होगा, किसानों के तमाम उत्पादनों को न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीदने का भरोसा देना होगा और वाटरशेड डेवलपमेंट प्रोग्रामों को दूरदराज के इलाकों तक पहुंचाना होगा। इसके अलावा भूमिहीन गरीबों के लिए फिर से भूमि सुधार एजेंडा लाना होगा, जिसे हम भुला चुके हैं। 


जहां तक भ्रष्टाचार की बात है, तो इसके खिलाफ अब निर्णायक कदम उठाने की जरूरत है। इसके लिए राजनीतिक विपक्ष और विभिन्न नागरिक समूहों से बातचीत कर सर्वसम्मति के आधार पर ऐसे कानून की राह तैयार की जाए, जिसके जरिए एक मजबूत, निष्पक्ष व जवाबदेह लोकपाल की स्थापना हो सके। इसके साथ भ्रष्टाचार-निरोधी और भी उपाय किए जा सकते हैं, जिनमें लंबे समय से लंबित चुनावी, प्रशासनिक और न्यायिक सुधारों को लागू करने और ग्रामीण व शहरी बस्तियों के स्तर पर शिकायतों के निवारण की प्रभावी व्यवस्था बनाना शामिल है। 
इसके अलावा महिला आरक्षण विधेयक के लिए पर्याप्त समर्थन जुटाने के लिए यूपीए, लेफ्ट व भाजपा के साथ बैक-रूम लॉबिंग करने की भी जरूरत है। अनुसूचित जातियों व जनजातियों के लिए सरकार को एक ऐसी मजबूत व्यवस्था तैयार करनी होगी, जो उन तक बजटीय संसाधनों को प्रभावी ढंग से पहुंचा सके। इससे उन्हें अपने विकास संबंधी अवरोधों को पाटने में मदद मिलेगी। एक मजबूत अनुसूचित जाति-जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम उन्हें जारी हिंसा से बेहतर ढंग से बचा सकेगा। ऐसी योजनाएं बनाई जाएं, जो देश की अनु. जाति-जनजाति बस्तियों में शुद्ध पेयजल, साफ-सफाई, चाइल्ड-केयर सेंटर व सड़क जैसी बुनियादी सेवाओं की गारंटी दे सकें। 
यूपीए सरकार ने वर्ष २००४ में सांप्रदायिक हिंसा रोकने के लिए एक कानून बनाने का वादा किया था, लेकिन अब तक उसमें ऐसा मजबूत विधेयक लाने की राजनीतिक इच्छाशक्ति नजर नहीं आई है, जो सांप्रदायिक दंगों से लोगों को न बचा पाने के मामले में सरकारी अधिकारियों को जवाबदेह ठहरा सके। इसके अलावा अल्पसंख्यकों की बेहतरी के लिए गरीब अल्पसंख्यक बच्चों को छात्रवृत्ति देने, उनके इलाकों में आवासीय स्कूलों की व्यवस्था करने के अलावा ऐसी योजनाएं भी चलाई जा सकती हैं, जो उनकी बस्तियों में बुनियादी सेवाओं की गारंटी दे सकें। 
भारत के अशांत प्रदेशों में लोगों के जख्मोंपर मरहम लगाने के लिए मानवाधिकारों के प्रति नई वचनबद्धता की आवश्यकता है। एनकाउंटर किलिंग व टॉर्चर को खत्म व दंडित किया जाए और एएफएसपीए, सार्वजनिक सुरक्षा अधिनियम, अशांत क्षेत्र अधिनियम जैसे कानूनों को निरस्त किया जाए। इससे इन राज्यों में सुलह और मेल-मिलाप की नई मानसिकता तैयार होगी। यहां की महिलाओं, बच्चों, युवाओं और रोजगार के विकास के लिए स्पेशल पैकेज भी दिया जाए। 
लोक-स्वास्थ्य सेवाओं में सरकारी निवेश बढ़ाने की जरूरत है। इसके अलावा मुफ्त या सस्ती जेनरिक दवाओं के लिए भी योजना बनाई जाए। इसके लिए राजस्थान के सफल प्रयोग को आधार बनाया जा सकता है। शहरों में झुग्गी-बस्तियों में रहने वाले व स्ट्रीट वेंडर्स के लिए ऐसे कानून व योजनाएं बनानी होंगी, जो इन्हें निश्चित अवधि के लिए जमीन का अधिकार और बुनियादी सुविधाएं दे सकें। लोग सरकार से सिर्फ कीमतों को नियंत्रित रखने, आर्थिक विकास को बढ़ावा देने और स्वच्छ शासन मुहैया कराने की उम्मीद नहीं करते। वे अपने जीवन को ज्यादा सम्मानजनक बनाने के अपने रोजमर्रा के संघर्ष में भी उससे मदद की उम्मीद करते हैं। यह ऐसी उम्मीद है, जिसे सरकारें चुने जाने के बाद आसानी से भूल जाती हैं। 


(लेख में व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं।) 
महिला आरक्षण विधेयक ९ मार्च २०१० को राज्यसभा में पारित हो चुका है। 
महिलाओं के लिए लोकसभा व राज्य विधानसभाओं में ३३ फीसदी सीटें आरक्षित करने की पैरवी करने वाले इस विधेयक का संसद के निचले सदन में पारित होना अभी बाकी है। 

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